Tuesday 10 December 2013

तेरे ख़त ....


मेरे कमरे के एक कोने में 

बरसो से एक किताब में 
तेरे लिखे ख़त सांसे भर रहे है 
उस किताब पे जमी गर्द 
हटाने की हिम्मत नहीं होती
जब जब हाथ रखता हूँ 
उस किताब के उस पन्ने पे 
जिसपे तेरा नाम लिखा है 
दिल में एक खलिश उठती है 

महसूस नहीं होता आँखों से 
अश्क कब निकल जाते है 
लेकिन तेरे ख़त आज भी 
मेरी किताब में जिंदा है | 

तुम्हारी याद के आजाने के बाद हम 
लफ्जों के सहारे दिल को बहलाते है |

अलतमश

No comments:

Post a Comment