मैं बरगद की तलाश में निकला था
लेकिन मुझे बबूल बहुत मिले
कुछ नीम भी थे
साथ में जामुन के दरख़्त भी थे
गर्मी का मोसम है
आम की टेहेनिया भी झुकी नज़र आई
लेकिन कहीं भी बरगद का दरख़्त नज़र नहीं आया
जंगल शहर में कब तब्दील हुआ
किसी को मालूम न था
बस रस्ते बता रहे थे मैं शहर
की राह पे हूँ
क्युकी गाँव के रस्ते
तो आजतक कच्चे है
अब सारे दरख़्त उजड़ गए
लम्बे लम्बे मकान खड़े है दोनों सिम्त
कोई भी झुला अब नहीं दिखता
अब शहर में बरगद की छाव नहीं मिलती
गाँव याद बहुत आता है
लेकिन घर की मजबूरियों ने शहर की
ज़ंजीर बनाके पैरो में बेड़िया डाल दी है
अलतमश
लेकिन मुझे बबूल बहुत मिले
कुछ नीम भी थे
साथ में जामुन के दरख़्त भी थे
गर्मी का मोसम है
आम की टेहेनिया भी झुकी नज़र आई
लेकिन कहीं भी बरगद का दरख़्त नज़र नहीं आया
जंगल शहर में कब तब्दील हुआ
किसी को मालूम न था
बस रस्ते बता रहे थे मैं शहर
की राह पे हूँ
क्युकी गाँव के रस्ते
तो आजतक कच्चे है
अब सारे दरख़्त उजड़ गए
लम्बे लम्बे मकान खड़े है दोनों सिम्त
कोई भी झुला अब नहीं दिखता
अब शहर में बरगद की छाव नहीं मिलती
गाँव याद बहुत आता है
लेकिन घर की मजबूरियों ने शहर की
ज़ंजीर बनाके पैरो में बेड़िया डाल दी है
अलतमश
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