Monday 20 May 2013

Sarhad


वहा कभी सकरी गलियारे थे ,
जहा कोपल खिला करते थे ,

हरे भरे खेत खलियान थे ,
नदिया भी बहा करती थी ,
आज़ादी की लहर थी ,
खुशियों का ज़माना था ,
फिर कुछ सत्ता के दीवानों ने ,
कागज़ के पन्नो पे नफरत की
सिहाई से लकीरों की सरहद बनाई ,
लोगो की प्यास भुजाने को खून की नदिया बहाई,
सिंदूर की लाली का रंग सफेद होगया ,
माँ की कोख उजड़ी बेटा शहीद होगया |

अलतमश

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