वहा कभी सकरी
गलियारे थे ,
जहा कोपल खिला करते
थे ,
हरे भरे खेत खलियान
थे ,
नदिया भी बहा करती
थी ,
आज़ादी की लहर थी ,
खुशियों का ज़माना था
,
फिर कुछ सत्ता के
दीवानों ने ,
कागज़ के पन्नो पे
नफरत की
सिहाई से लकीरों की
सरहद बनाई ,
लोगो की प्यास
भुजाने को खून की नदिया बहाई,
सिंदूर की लाली का
रंग सफेद होगया ,
माँ की कोख उजड़ी
बेटा शहीद होगया |
अलतमश
अलतमश
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