Wednesday 5 June 2013

BARSAAT KE DIN

तेरे दिए हुए गुलाब आज भी 
किताब मेंरखे मिल जाते है 
काश इसी तरह तुझे भी मैं 
ऐसे संभाल के रख पाता 
अपनी ज़िन्दगी में
आज बारिश ने बहुत कुछ 
याद दिला दिया गुज़रा 
वक़्त तेरे साथ सावन के महीने का ....

तुम जुल्फों को जब बारिश में 
खोलती थी तुम्हारी भीगी 
हुई ज़ुल्फे मानो ऐसी 
लगती जैसे किसी 
पर्वत से बहता झरना हो 
तुम्हारी खामदार ज़ुल्फे जिनकी 
छाव में ता उम्र ज़िन्दगी 
गुज़ार ने को दिल चाहे ...

बारिश की बुँदे तुम्हारे 
संगे मर मर से बने 
हुस्न को छूती 
कुछ यू चमकती 
जैसे तुम्हे छूते ही 
हीरे में तब्दील हो गयी हो ...

गाल तुम्हारे जैसे 
खिले हुए गुलाब की 
पंखुरी हो |

बारिश ने तुम्हारी यादों 
में भिगा दिया मुझे ...

मोहब्बत के दिनों में 
लिखी हुई कुछ पंक्तिया जिनका 
अब कोई मोल नहीं है मेरी 
किताब में क़ैद थी आज यहाँ लिख दी |

: अलतमश

2 comments:

  1. मोहब्बत के दिनों में
    लिखी हुई कुछ पंक्तिया जिनका
    अब कोई मोल नहीं है मेरी
    किताब में क़ैद थी आज यहाँ लिख दी |

    अच्छी प्रस्तुति अल्तमश....

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